Sunday, August 10, 2008

ताज़ा ख़बर

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था तो सोचा लोगों को ख़बर कर दी जाए की हम लोग क्या गुल खिला रहे हैं | पिछले कुछ दिनों में मशाल ने "संचय" नाम का एक नया कार्यक्रम शुरू किया है | इसमें छोटे-छोटे दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं जो की किसी एक विषय से जुड़े होते हैं | आंग्ल-भाषा में इसे "sketches" कहा जाता है | तो २७ जूलाई सन २००८ को मशाल ने CFD में पहला "संचय" प्रस्तुत किया | विषय था "सपने" , जो की प्रत्युष के दिमाग की खुराफात थी | फ़ैसला यह हुआ कि चार कहानियाँ दिखाई जायेंगी | एक मेरे हिस्से में आई, एक चाचा के और दो प्रत्युष के | इस बार हमारे साथ थे दो नए दोस्त ,रंजन तथा सिद्धार्थ उर्फ़ सिड | यह दोनों ही चाचा कि कहानी का हिस्सा थे | जी हाँ मैं भी यही सोच रहा था , बेचारे | पर अब होनी कौन टाल सकता है | अभ्यास शुरू हुआ और पहली बार मैं अकेले बिना किसी दर्शक के अभ्यास कर रहा था , और सच मानिए ,बिल्कुल मज़ा नहीं आया :) | किसी तरह हम लोग गिरते पड़ते आखरी दिन तक पहुँच ही गए | प्रत्युष को सारे डायलोग याद नहीं थे , मैं पता नहीं क्यों बीच -बीच में पूजा नाम कि लड़की का सन्दर्भ ला रहा था ;) , रहीम हमेशा की तरह संवाद लेकर दौड़ रहा था और चाचा हमेशा की तरह चाचा था | तो आप समझ सकते हैं कि हालत काफ़ी ख़राब थी | आखरी दिन प्रत्युष को अपने शरीर पर चित्रकारी करवानी थी , जिसमें विकास उर्फ़ विक ने बहुत साथ दिया | विकास इस बार नाटक से पहले कि हडबडाहट का प्रत्यक्षदर्शी था | जब शुरू होने से पहले प्रत्युष लाईट्स बूथ में बैठे तिवारी पर कहर बरपा रहा था तो विकास को थोड़े डर की अनुभूति हुई पर प्रत्युष को जानने वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी | यदि आपने पृथ्वी रंगमंच में हुए "सारी रात" से पहले रहीम तथा प्रत्यूष की बातचीत सुनी होती तो आपको लगता की नाटक होने ही नहीं वाला | दोनों रक्त-पिपासु जानवरों की तरह एक दूसरे पर शाब्दिक बाण चला रहे थे | कहानी लम्बी है तो आप मुझसे मिलें तो मैं मिर्च-मसाला लगा कर सुनाऊंगा |

पर वह कहते हैं न "All's well that ends without getting someone killed or fired" | असल में ऐसा नहीं कहते हैं पर यह मेरी कृति है है तो सोचा बीच में घुसा दूँ ;) | बहरहाल लगभग सारे टिकट बिक गए थे और लोगो ने हमारी कोशिश को बहुत तारीफ़ की | तो फ़िर अगले बार तक शुभ-रात्री , शब्बा-खैर , good night |

2 comments:

faiqg said...

सबसे अहम बात तो आप कहना ही भूल गए। जी नही, अहम बात यह नहीं की वोह चारों कहानियाँ उम्दा थीं। यह भी नहीं कि वोह कहानियॉ हमारे दोस्तों ने खुद लिखी थीं। और यह भी नहीं कि सभी नाटकों मै निर्देशन और अभिनय काबिल ए तारीफ़ था।
मैं बात कर रहा हूँ हमारे दोस्त मियाँ किम के नये उजले रूप की। काली घटाओ वाली डरावनी रात मै जैसे दूध से धुला हुआ चाँद, सितारों के साथ नाटक के टिकिट बेच रहा हो ...

Thoda Khao Thoda Phenko said...

हे हे हे!!!! मेरा तो नेचर ही कुछ ऐसा है!!! :) :) :)