Wednesday, January 2, 2008

एक कहानी ख़त्म तो दूसरी शुरू हो गयी मामू ....

यदि transliteration न होता तो आप यह बकैती आंग्ल - भाषा में झेल रहे होते सवाल यह उठता है कि जिस blog पर सबसे ज्यादा लेख मेरे हों , क्या उस blog का कोई भविष्य है जी हाँ सही सोचा आपने , नहीं है चलिए कोई बात नहीं जब आप अपना काम-धाम छोड़कर इसे पढ़ ही रहे हैं तो मैं आपको कुछ नयी ताज़ा खबरें दे दूं।

कुछ दिनों पहले "सारी रात " के निर्देशकों ने नाटक के पात्रों को भोजन कराया तत्पश्चात हम लोग coffee पान के लिए barista गए वहाँ हम लोगों ने आसपास बैठे लोगों को शर्मिंदा करने के साथ "poster signing" भी की आयूश पर फिर से "IIT" से होने का आरोप लगाया गया जो की उसने बिना किसी बहस के मान लिया , हमारे साथ रहकर समझदार हो गया है । निधि अपने पूर्ण रंग में नहीं थी और अपने स्वभाव के विपरीत काफी शांत बैठी थी जी हाँ मैं भी यही सोच रह था कि आख़िर कैसे क्यों ?? पर मित्रों मैं वह कैसे झुठला सकता हूँ जो आंखों के सामने हुआ , जी हाँ निधि पूरे २ घंटे शांत बैठी थी !! इस सब के बीच एक महा-पुरुष सभी को हिदायत दे रहे थे कि कोई भी "poster" पर लिखे बिना वापस नहीं जाएगा , किन्तु खुद ही उन्होंने आधे से ज्यादा "posters" पर कलम नहीं छुआई

यह तो थी बीते हुए कल कि बात ,
अब आगे सुनते हैं आने वाले कल कि शुरुआत

मशाल के कुछ कीड़े (कुछ गंजे, कुछ मोटे , कुछ लंबे और कुछ ग्यारह महीनों से गर्भवती ) एक नाटक पर काम कर रहे थे , और मेरे घर का सामान तोड़ रहे थे काफी कुछ टूट चूका है और जो बचा है उसपर काम चल रहा है। क्षमा चाहूंगा , खबर यह नहीं थी, पर अपने घर के बारे में सोच कर आंखों में नमकीन पानी तैरने लगा और मैं भावुक हो उठा हाँ तो मैं कह रहा था कि एक नाटक पर काम चल रहा था रुप रेखा तथा संवाद काफी हद्द तक तैयार हो गए हैं , सम्पूर्ण नाटक का विश्लेषण अभी बाक़ी है
पिछले कुछ दिन काफी रोचक तथा काव्यात्मक गुजरे हैं मैं खुद अधिकतर समय, एक दुसरे का सिर फोड़ने को तैयार लोगों के बीच मध्यस्ता कर रहा था अब लगता है कि गलती कर दी , थोड़ी हाथापाई हो जाती तो समां और रंगीन हो जाता

लिखने को बहुत कुछ है , पर मुझे नींद आ रही है और अभी बहुत सा काम भी करना है , तो मैं चलता हूँ

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