Thursday, April 2, 2009

भडमानुस

अब तो आपको पता ही है की सभी मशालों ने नव वर्ष की छुट्टी को कुछ ज्यादा ही लम्बा खींच दिया था| खैर वापस आये तो सही, और वो भी धमाके के साथ| ३१ मार्च को बंगलोर नाट्य जगत के मक्का कहलाने वाले रंगशंकरा के प्रेक्षागृह में मशाल ने भडमानुस नामक नाटक का मंचन किया| और यकीन मानिए जिस उच्च कोटि का नाटक हुआ, उस की उम्मीद तो स्वयं हम लोगों को भी नहीं थी| ख़ुशी इस बात की है की दर्शकों ने नाटक का भरपूर आनंद उठाया, और सबसे महत्त्वपूर्ण ये की उन्होंने नाटक की गहराई को भी समझा|

बड़ी अजीब दास्ताँ है भडमानुस की| ये नाटक बिट्स के हिंदी ड्रामा क्लब के हमारे दो साथियों, रचना और ईशान, ने २००६ में लिखा था| सितम्बर २००६ में हुए पहले मंचन के बाद, परसों रंगशंकरा में इसका तीसरा मंचन था| और मज़े की बात ये है की हर बार नाटक के कलाकार अलग थे, उसी तरह दर्शकों की प्रतिक्रिया भी अलग थी| मैं इतना कह सकता हूँ की परसों रंगशंकरा में दर्शक दीर्घा में बैठे सभी जनों का पूरा मनोरंजन हुआ होगा, और उम्मीद है की कुछों को इस नाटक ने सोचने पर मजबूर भी किया होगा|

नाटक की कहानी की चर्चा यहाँ करना उचित नहीं होगा, पर भडमानुस ने कई प्रश्न उठाये हैं हमारी जीवन शैली पर| किस तरह हम इतिहास को अपना शास्त्र बनाकर भविष्य में दोबारा वही गलतियाँ करते हैं| किस तरह हम अपने जीवन को सफल बनाने की क्रिया में उसको और जटिल बना देते हैं| जो अराजक्ता के बीज हमारे पूर्वजों ने बोए थे, उसकी फसल आज तक मानवता काट रही है| हम तो यही उम्मीद कर सकते हैं की हम कुछ ऐसा न कर रहे हों की हमारी आने वाली नस्लें, हमें अपनी असफलता का दोषी ठहराएं| ये सब सवाल छुपे हैं भडमानुस में| अगर आप सोचें तो ये बस एक कहानी है, नहीं तो ये हमारे इतिहास का काला चिटठा है|

खैर, अब तो आगे बढ़ना है| अगला नाटक मई में होगा, २३ तारीख को अलायंस फ्रांसे आरक्षित है मशाल के अगले नाटक के लिए| उसकी सूचना आपको जल्द ही मिलेगी| तब तक के लिए मशाल प्रणाम!!!

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