Monday, November 3, 2008

विजयी भव:

दो हफ्ते देहरा दून की वादियों मैं अलसाई हुई ज़िन्दगी बिताने के बाद मैं वापस कूद पड़ा हूँ बेंगलूरू की आग में | किंतु बेंगलूरू में मेरा इस से बढ़िया स्वागत नहीं हो सकता था | तो हुआ कुछ ऐसा -
देहरा दून से देर रात चला मैं, तीन घंटे पहले अपनी उड़ान के लिए तैयार बैठा था , पर हमेशा की तरह हमारी उड़ान कुछ विलंब से चली | तत्पश्चात हमें बेंगलूरू airport से शहर आने का कोई साधन नहीं मिला | पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और एक बस और एक रिक्शा की सवारी कर ३:४५ तक घर पहुँच ही गया | घर पहुँच कर अति-शीघ्रता से स्नान तथा भोजन किया और निकल पड़े 'खराशें' का मंचन देखने |
'खराशें' से पूर्व एक आंग्ल भाषा के नाटक का बल पूर्वक सत्कार किया गया कुछ महानुभावों के द्बारा , बाकी भगवान् झूठ न बुलवाए | किंतु 'खराशें' के मंचन ने मेरी सारी थकावट तथा जीवन के प्रति जो घृणा पैदा हो गई थी पिछले बीस घंटों मैं , मिटा दी | बहुत दिनों के बाद एक अति-उत्तम मंचन देखने को मिला | रहीम , बंगाशु , खुशबू , किम, प्रत्यूष ने दिल को छू लेने वाले अभिनय का प्रदर्शन किया | नाटक की सफलता को आप इस बात से माप सकते हैं कि नाटक ख़त्म होते ही कई दर्शकों ने खड़े उठकर नाटक तथा पात्रों कि सराहना की |
'खराशें ' को तृतीय पुरूस्कार तथा प्रत्यूष को अपने बेहतरीन अभिनय के लिए द्वितीय पुरूस्कार से सम्मानित किया गया | मैंने प्रथम तथा द्वितीय पुरूस्कार जीतने वाले नाटक नहीं देखा , किंतु यह जानता हूँ की या तो वह नाटक अदभुत थे या फिर निर्णायक-गण से कोई गलती हो गई :) |
अभी के लिए इतना ही - बड़ा किट्टू

1 comment:

faiqg said...

उस दिन डी भाई गहन विचारों मैं डूबे थे। Preoccupied को हिन्दी मैं क्या बोलते हैं? मन्च साज सज्जा मैं अपना योगदान दिया और दर्शकों मैं शामिल हो गये। बाद मैं पता चला भाई साहब अभी अभी बन्गलोर आये हैं। जैसे कोई बड़ा भाई, इस्से बड़ा वाला रिश्ता इस्तेमाल करना सही है या नहीं यह मैं नही जानता, हौसला बड़ाने और देख रेख के लिये आया हो।
ख़ैर मैं पर्दे के पीछे खडा़ खराशें सुनते हुए तस्वीरें लेने कि कोशिश कर रहा था। बाद मैं देखा तो सारी तस्वीरें धुन्ध्ली थीं। अपने Digital camera की परिसीमा एक और बार पता चली। जो तस्वीरें हैं उनको देखने लायक बना कर जल्द पेश करुंगा।

अरे एक और बात्। मेरे दफ़्तर मैं एक नई लड़की आई है, नाम है मशाल्। :)